आखिर क्यों की जाती है विश्वकर्मा भगवान की पूजा ।
प्राचीन काल में जितनी राजधानियां थीं प्राय: सभी विश्वकर्मा की ही बनाई मानी जाती हैं। यहां तक कि सतयुग का स्वर्ग लोक, त्रेता युग की लंका, द्वापर की द्वारिका और हस्तिनापुर आदि जैसे प्रधान स्थान विश्वकर्मा के ही बनाए माने जाते हैं। सुदामापुरी भी विश्वकर्मा ने ही तैयार किया था।
यह भी मान्यता है कि सभी देवों के भवन और उनके दैनिक उपयोग की वस्तुएं विश्वकर्मा ने ही बनाई थी। कर्ण का कुंडल, विष्णु भगवान का सुदर्शन चक्र, महादेव का त्रिशूल और यमराज का कालदंड भी उन्हीं की देन है। कहते हैं कि पुष्पक विमान का निर्माण भी विश्वकर्मा ने ही किया था।
धर्मशास्त्रों में भगवान विश्वकर्मा के पांच स्वरूपों और अवतारों का वर्णन है। विराट विश्वकर्मा, धर्मवंशी विश्वकर्मा, अंगिरावंशी विश्वकर्मा, सुधन्वा विश्वकर्मा और भृगुवंशी विश्वकर्मा।
ऋग्वेद में भी विश्वकर्मा सूक्त के नाम से 11 ऋचाएं लिखी गई हैं, जिनके प्रत्येक मंत्र पर लिखा है ऋषि विश्वकर्मा भौवन देवता आदि। ऋग्वेद में ही विश्वकर्मा शब्द एक बार इंद्र व सूर्य का विशेषण बनकर भी प्रयुक्त हुआ है।
यदि आप धन-धान्य और सुख-समृद्धि की चाह रखते हैं, तो भगवान विश्वकर्मा की पूजा विशेष मंगलदायी होती है। हम यदि अपने प्राचीन ग्रंथों, उपनिषदों एवं पुराणों आदि का अवलोकन करें, तो पाएंगे कि आदि काल से ही विश्वकर्मा अपने विशिष्ट ज्ञान एवं विज्ञान के कारण न केवल मानव, बल्कि देवताओं के बीच भी पूजे जाते हैं।
सितंबर के 17 तारीख को प्रतिपदा तिथि शनिवार पूर्व भाद्र नक्षत्र मीन राशि में चंद्रमा है। इस दौरान अमृत योग में भगवान विश्वकर्मा की पूजा होगी। पूजा का श्रेष्ठ मुहूर्त सुबह 7.30 बजे से 12 बजे दिन तक तथा इसके बाद फिर तीन बजे से देर शाम तक है।
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