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भाई द्विज पूजा विधि

इस पूजा में भाई की हथेली पर बहनें चावल का घोल लगाती हैं उसके ऊपर सिन्दूर लगाकर कद्दू के फूल, पान, सुपारी मुद्रा आदि हाथों पर रखकर धीरे धीरे पानी हाथों पर छोड़ते हुए कुछ मंत्र बोलती हैं जैसे "गंगा पूजे यमुना को यमी पूजे यमराज को, सुभद्रा पूजा कृष्ण को, गंगा यमुना नीर बहे मेरे भाई की आयु बढ़े" इसी प्रकार कहीं इस मंत्र के साथ हथेली की पूजा की जाती है " सांप काटे, बाघ काटे, बिच्छू काटे जो काटे सो आज काटे" इस तरह के शब्द इसलिए कहे जाते हैं क्योंकि ऐसी मान्यता है कि आज के दिन अगर भयंकर पशु काट भी ले तो यमराज के दूत भाई के प्राण नहीं ले जाएंगे। कहीं कहीं इस दिन बहनें भाई के सिर पर तिलक लगाकर उनकी आरती उतारती हैं और फिर हथेली में कलावा बांधती हैं। भाई का मुंह मीठा करने के लिए उन्हें माखन मिस्री खिलाती हैं। संध्या के समय बहनें यमराज के नाम से चौमुख दीया जलाकर घर के बाहर रखती हैं। इस समय ऊपर आसमान में चील उड़ता दिखाई दे तो बहुत ही शुभ माना जाता है। इस सन्दर्भ में मान्यता यह है कि बहनें भाई की आयु के लिए जो दुआ मांग रही हैं उसे यमराज ने कुबूल कर लिया है या चील जाकर यमराज को बह...

भाई द्विज की कथा

कार्तिक  मास के  शुक्ल पक्ष  की  द्वितीया  तिथि को मनाए जाने वाला हिन्दू धर्म का पर्व है जिसे  यम द्वितीया  भी कहते हैं। भाईदूज  में हर बहन रोली एवं अक्षत से अपने भाई का तिलक कर उसके उज्ज्वल भविष्य के लिए आशीष देती हैं। भाई अपनी बहन को कुछ उपहार या दक्षिणा देता है। भाईदूज दिवाली के दो दिन बाद आने वाला ऐसा पर्व है, जो भाई के प्रति बहन के स्नेह को अभिव्यक्त करता है एवं बहनें अपने भाई की खुशहाली के लिए कामना करती हैं। इस त्योहार के पीछे एक किंवदंती यह है कि  यम  देवता ने अपनी बहन यमी ( यमुना ) को इसी दिन दर्शन दिया था, जो बहुत समय से उससे मिलने के लिए व्याकुल थी। अपने घर में भाई यम के आगमन पर यमुना ने प्रफुल्लित मन से उसकी आवभगत की। यम ने प्रसन्न होकर उसे वरदान दिया कि इस दिन यदि भाई-बहन दोनों एक साथ यमुना नदी में स्नान करेंगे तो उनकी मुक्ति हो जाएगी। इसी कारण इस दिन  यमुना नदी में भाई-बहन के एक साथ स्नान करने का बड़ा महत्व है। इसके अलावा यमी ने अपने भाई से यह भी वचन लिया कि जिस प्रकार आज के दिन उसका भाई यम उसके घर आया है, हर भाई अपनी ...

भाई द्विज की पूजा की कथा

भाई दूज  का त्योहार भाई बहन के स्नेह को सुदृढ़ करता है।  यह त्योहार दीवाली के दो दिन बाद मनाया जाता है। हिन्दू धर्म में भाई-बहन के स्नेह-प्रतीक दो त्योहार मनाये जाते हैं - एक रक्षाबंधन जो श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इसमें भाई बहन की रक्षा करने की प्रतिज्ञा करता है। दूसरा त्योहार, 'भाई दूज' का होता है। इसमें बहनें भाई की लम्बी आयु की प्रार्थना करती हैं। भाई दूज का त्योहार कार्तिक मास की द्वितीया को मनाया जाता है। भैया दूज को भ्रातृ द्वितीया भी कहते हैं। इस पर्व का प्रमुख लक्ष्य भाई तथा बहन के पावन संबंध व प्रेमभाव की स्थापना करना है। इस दिन बहनें बेरी पूजन भी करती हैं। इस दिन बहनें भाइयों के स्वस्थ तथा दीर्घायु होने की मंगल कामना करके तिलक लगाती हैं। इस दिन बहनें भाइयों को तेल मलकर गंगा यमुना में स्नान भी कराती हैं। यदि गंगा यमुना में नहीं नहाया जा सके तो भाई को बहन के घर नहाना चाहिए। यदि बहन अपने हाथ से भाई को जीमाए तो भाई की उम्र बढ़ती है और जीवन के कष्ट दूर होते हैं। इस दिन चाहिए कि बहनें भाइयों को चावल खिलाएं। इस दिन बहन के घर भोजन करने का विशेष महत्व है।...

जानिए क्यों खास है आज का करवा चौथ और कब और कहाँ से परंपरा बन गयी करवा चौथ मानाने की

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आज देश के हर कोने में महिलाएं करवा चौथ का व्रत रखने लगी हैं। इस बार करवा चौथ का चांद बेहद खास है क्योंकि 100 साल बाद एक महासंयोग बन रहा है। करवा चौथ बुधवार को है और इसी दिन गणेश चतुर्थी और श्री कृष्ण का रोहिणी नक्षत्र भी है। यानि इस बार व्रत करने से मिलेगा 100 व्रतों का वरदान। करवा शब्द का मतलब होता है मिट्टी का बना घड़ा। और चौथ का अर्थ है कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष का चौथा दिन। यानि करवा चौथ हर साल कार्तिक मास के चौथे दिन मनाया जाता है। लेकिन ऐसा नहीं है कि शुरू से ही ये व्रत पति की लंबी उम्र के लिए रखा जाता था। ये व्रत कभी पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अच्छी फसल की कामना से शुरू हुआ था। तब रबी की फसल बोने के समय बड़े-बड़े मिट्टी के कलशों में गेहूं भरा जाता था। इन कलशों को करवा कहते थे। लेकिन वक़्त के साथ करवा चौथ का अर्थ और मायने पूरी तरह से बदल गए। पंजाब-हरियाणा में करवे में पानी और फूल डालने का चलन है तो राजस्थानियों में करवे को चावल और गेहूं से भरा जाता है। वहीं यूपी और एमपी में करवे को मिठाई से भरा जाता है। खासतौर पर चावल के लड्डू से। चांद को देखने का तरीका भी अलग-अलग ह...