जानिए क्यों खास है आज का करवा चौथ और कब और कहाँ से परंपरा बन गयी करवा चौथ मानाने की

आज देश के हर कोने में महिलाएं करवा चौथ का व्रत रखने लगी हैं। इस बार करवा चौथ का चांद बेहद खास है क्योंकि 100 साल बाद एक महासंयोग बन रहा है। करवा चौथ बुधवार को है और इसी दिन गणेश चतुर्थी और श्री कृष्ण का रोहिणी नक्षत्र भी है। यानि इस बार व्रत करने से मिलेगा 100 व्रतों का वरदान। करवा शब्द का मतलब होता है मिट्टी का बना घड़ा। और चौथ का अर्थ है कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष का चौथा दिन। यानि करवा चौथ हर साल कार्तिक मास के चौथे दिन मनाया जाता है। लेकिन ऐसा नहीं है कि शुरू से ही ये व्रत पति की लंबी उम्र के लिए रखा जाता था।
ये व्रत कभी पंजाब और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अच्छी फसल की कामना से शुरू हुआ था। तब रबी की फसल बोने के समय बड़े-बड़े मिट्टी के कलशों में गेहूं भरा जाता था। इन कलशों को करवा कहते थे। लेकिन वक़्त के साथ करवा चौथ का अर्थ और मायने पूरी तरह से बदल गए। पंजाब-हरियाणा में करवे में पानी और फूल डालने का चलन है तो राजस्थानियों में करवे को चावल और गेहूं से भरा जाता है। वहीं यूपी और एमपी में करवे को मिठाई से भरा जाता है। खासतौर पर चावल के लड्डू से।
चांद को देखने का तरीका भी अलग-अलग है। मसलन, पंजाबियों में महिलाएं छलनी से चांद देखती हैं तो कहीं पानी की परछाई में चांद देखने की प्रथा है। लेकिन बनियों में सीधे ही चांद को अर्घ देने का रिवाज़ है। छलनी से चांद देखने की भी कई रोचक कहानियां हैं। कोई कहता है कि इस दिन चांद को कहीं कहीं भगवान शिव और तो कहीं चतुर्थी तिथि के कारण भगवान गणेश का रूप माना जाता है। चूंकि इस दिन महिलाएं दुल्हन की तरह सजती हैं। इसलिए वो शर्म के मारे चांद को सीधे नहीं देखती बल्कि छलनी से चांद से परदा करती हैं।
करवा चौथ की शुरुआत कब और कहां से हुई इसके बारे में साफ जानकारी नहीं मिलती। लेकिन करवा चौथ से कई लोककथाएं जुड़ी हुई हैं। सबले लोकप्रिय मान्यता है वीरावती की। मान्यता के मुताबिक महारानी वीरावती 7 भाइयों की इकलौती और लाडली बहन थी। शादी के बाद वीरावती ने करवा चौथ का पहला व्रत रखा। लेकिन शाम होते होते वो भूख और प्यास से बेहाल हो गई। चांद का इंतजार करते देख वीरावती के भाइयों ने एक पहाड़ी के पीछे आग जला दी। आग की रौशनी को चांद समझकर वीरावती ने व्रत खोल दिया। लेकिन तभी खबर आई कि उसके पति को सांप ने डस लिया है। वीरावती सदमें में आ गई। तभी बिलखती वीरावती को मां पार्वती ने दर्शन दिए। माता ने वीरावती को सच बताया और दोबारा पूरा व्रत रखने को कहा। वीरावती ने ऐसा ही किया। प्रसन्न होकर माता ने करवे का जल पति पर छिड़का और वीरवती का पति एकदम स्वस्थ हो गया।
एक और रोचक कहानी है सावित्री और सत्यवान की भी। जब यमराज सत्यवान के प्राण लेने पहुंचे तो सावित्री यमराज के अपने पति के प्राणों की भीख मांगने लगी। यमराज नहीं माने तो सावित्री ने खाना-पीना त्याग दिया। यमराज ने फिर सावित्री से पति के अलावा कुछ भी मांगने को कहा। समझदार सावित्री ने संतान का वरदान मांगा। वचन से बंधे यमराज को तब सत्यवान के प्राण लौटाने पड़े। मान्यता है सावित्री के उसी उपवास से शुरू हुआ करवा चौथ का व्रत।
करवा चौथ को लेकर कहानी महाभारत युग की भी है। कहानी कुछ यूं है कि युद्ध से पहले द्रौपदी अर्जुन के साथ भगवान की पूजा के लिए नीलगीरि की पहाड़ियों पर जा रही थी। इसी बीच अचानक एक डर द्रौपदी के मन में बैठ गया। उसे लगा जैसे वो सूनसान जंगल में अकेली है। द्रौपदी इतना डर जाती है कि वो भगवान श्री कृष्ण को याद करती है। श्री कृष्ण द्रौपदी को कार्तिक मास की कृष्ण चतुर्थी को व्रत करने की सलाह देते हैं। श्री कृष्ण द्रौपदी को पांडवों की जीत का आश्वासन भी देते हैं।
समाजशास्त्री करवा चौथ को एक अलग नजरिए से देखते हैं। उनके मुताबिक जब बालविवाह हुआ करते थे तब कम उम्र की दुल्हन का ससुराल में कोई अपना नहीं होता था। ऐसे में ससुराल की कोई हम उम्र की लड़की उसकी दोस्त बन जाती थी। सुख-दुख बांटने वाली उन सहेलियों का त्योहार था करवा चौथ यानी तब पति नहीं बल्कि विवाहित बाल-वधुओं का त्योहार था करवा चौथ। इन सभी कहानियों में पात्र बेशक बदल गए हों। लेकिन कहानी का सार एक ही है। सभी कहानियों में पत्नियां अपने पति की ढाल बन जाती हैं। उनके प्रेम और समर्पण में इतनी ताकत होती है कि वो अपने पति को मौत के मुंह से भी खींच लाए।

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