शारदीय नवरात्रि : आ रही है मां, मनचाहे वरदानों से भरिए अपनी खाली झोली
मां के स्वागत के दिन आ गए हैं। इस साल नवरात्रि 10 अक्टूबर से शुरू हो रही है। मां की आराधना का यह उत्सव इस साल दिनों का है। सालों बाद नवरात्रि में दस दिन तक मां की भक्ति कर मन चाहे वरदान पाने का मौका हम सभी के पास है। नवरात्रि में हम शक्ति स्वरूपा मां दुर्गा की पूजा करते हैं। चैत्र के साथ अश्विन नवरात्रि का विशेष महत्व है। शारदीय नवरात्रि का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है, क्योंकि यह नवरात्रि पर्व दशहरे से ठीक पहले हैं और पूरा महीना ही त्योहारी सीजन से भरपूर है। महानवरात्रि के नौ दिनों में मां के अलग–अलग रुपों – मां शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री मां की शक्ति पूजा की जाती है। घटस्थापना नवरात्रि के पहले दिन होती है। 9 दिनों तक मां के लिए की जाने वाली पूजा और उपवास 10वें दिन कन्या पूजन के साथ खोला जाता है।
नवरात्रि शुरुआत – 10 अक्टूबर (बुधवार) 2018
महाअष्टमी– 17 अक्टूबर
महानवमी– 18 अक्टूबर (गुरुवार) 2018
नवरात्रि दौरान घर में घट स्थापना और पूजा विधि–
नवरात्रि घट स्थापना समय
नवरात्रि घट स्थापना मुहूर्त 2018 – 06:18:40 से लेकर 10:11:37 तक (अवधि : 3 घंटे 52 मिनट)
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नवरात्रि में घट स्थापना करते समय कुछ नियमों का पालन करने से माता की पूजा सफल होती हैं। ये 5 विशेष नियम इस प्रकार हैं–
1 – उत्तर–पूर्व दिशा यानी (ईशान कोण) देवताओं की दिशा है। इसलिए, इस दिशा में माता की प्रतिमा और घट स्थापना करें।
2 – घट स्थापना सदैव शुभ मुहूर्त में और स्नान के बाद ही करें। पूजा स्थान से थोड़ी दूर पर एक पाटे पर लाल व सफेद रंग के कपड़े बिछाएं। नवरात्रि की इस पूजा में सबसे पहले गणेशजी का पूजन किया जाता है। कलश को गंगा जल से शुद्ध किया जाता है, जो कि भगवान विष्णु का प्रतिरूप माना जाता है। कलश पर स्वस्तिक बनाएं और इसके गले में मौली बांधें। 5 प्रकार के पत्तों से कलश को सजाते हुए इस घट या कलश में हल्दी की गांठ, साबुत सुपारी, दुर्वा और मुद्रा रखी जाती है। एक जटाधारी नारियल को लाल कपड़े में बांधकर उसे कलश पर रख दें। ध्यान रहे कि नारियल का मुंह आपकी ओर रहे।
3 – पूजा करते समय सारे देवताओं को इन समस्त दिनों के दौरान विराजमान रहने के लिए प्रार्थना करें। कलश के नीचे बालू की वेदी होती है जिसमें जौ को बोया जाता है। इस विधि में धन धान्य देने वाली अन्नपूर्णा देवी की पूजा होती है। मां दुर्गा की प्रतिमा को पूजा स्थान के बीच में स्थापित करते समय उसे अक्षत, चुनरी, सिंदूर, फूलमाला, रोली, साड़ी, आभूषण और सुहाग से सुसज्जित करें। कलश की पूजा व टीका करने के बाद देवी माँ की चौकी स्थापित करें।
4 – सुबह सवेरे के देवी पूजन में माता को फल व मिठाई और रात में दूध का भोग लगाएं। पूजा के समय दुर्गा चालीसा या दुर्गा सप्तशती का पाठ करें और अखंड दीया जलाएं जो व्रत के पारण तक जलता रहे।
5 – कलश के स्थापित हो जाने के पश्चात गणेशजी और माँ दुर्गा की आरती से 9 दिनों का व्रत प्रारंभ कीजिए।
6 – भक्तजन पूरे दिन उपवास रखते हैं और शाम के समय मां दुर्गा की विधि विधान से पूजा करके अपना व्रत खोलते हैं।
7 – जिस दिन नवरात्र पूरा हो रहा हो उस दिन हलवा–पूरी का भोग जरूर लगाएं। याद रहे – अंतिम दिन के दौरान नवरात्रि जवारा का विसर्जन आवश्यक है।
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