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Showing posts from 2018

तुझे कब से पुकारे तेरा लाल

माँ शेरोवाली आजा मेहरो वाली, तुझे कब से पुकारे तेरा लाल आजा माँ शेरोवाली वारु तुझपे मैं पूजा के थाल आजा माँ शेरो वाली माँ शेरोवाली आजा मेहरो वाली लगते है झूठे माँ सहारे सरे जग के रोना है मुझे तेरे चरणों से लग के मेरे अनसु कहे गे मेरा हाल आजा माँ शेरोवाली भक्ति में तेरी मैंने जीवन की शाम की पल पल जपी है मैया माला तेरे नाम की मेरी भक्ति का कर के ख्याल आजा मा शेरो वाली वारु तुझपे मैं पूजा के थाल,आजा माँ शेरो वाली

निर्धन के घर भी आ जाना

कभी फुर्सत हो तो जगदम्बे, निर्धन के घर भी आ जाना | जो रूखा सूखा दिया हमें, कभी उस का भोग लगा जाना || ना छत्र बना सका सोने का, ना चुनरी घर मेरे टारों जड़ी | ना पेडे बर्फी मेवा है माँ, बस श्रद्धा है नैन बिछाए खड़े || इस श्रद्धा की रख लो लाज हे माँ, इस विनती को ना ठुकरा जाना | जो रूखा सूखा दिया हमें, कभी उस का भोग लगा जाना || जिस घर के दिए मे तेल नहीं, वहां जोत जगाओं कैसे | मेरा खुद ही बिशोना डरती माँ, तेरी चोंकी लगाऊं मै कैसे || जहाँ मै बैठा वही बैठ के माँ, बच्चों का दिल बहला जाना | जो रूखा सूखा दिया हमें, कभी उस का भोग लगा जाना || तू भाग्य बनाने वाली है, माँ मै तकदीर का मारा हूँ | हे दाती संभाल भिकारी को, आखिर तेरी आँख का तारा हूँ || मै दोषी तू निर्दोष है माँ, मेरे दोषों को तूं भुला जाना | जो रूखा सूखा दिया हमें, कभी उस का भोग लगा जाना ||

ले के पूजा की थाली ज्योत मन की जगाली

भजन गंगा ×Bhajan Ganga प्रथम पन्ना home कृष्ण भजन krishna bhajans शिव भजन shiv bhajans हनुमान भजन hanuman bhajans साईं भजन sai bhajans जैन भजन jain bhajans दुर्गा भजन durga bhajans गणेश भजन ganesh bhajans राम भजन raam bhajans गुरुदेव भजन gurudev bhajans विविध भजन miscellaneous bhajans विष्णु भजन vishnu bhajans बाबा बालक नाथ भजन baba balak nath bhajans देश भक्ति भजन patriotic bhajans खाटू श्याम भजन khatu shaym bhajans रानी सती दादी भजन rani sati dadi bhajans बावा लाल दयाल भजन bawa lal dayal bhajans शनि देव भजन shani dev bhajans आज का भजन bhajan of the day भजन जोड़ें add bhajans Get it on Google Play ले के पूजा की थाली ज्योत मन की जगाली ले के पूजा की थाली, ज्योत मन की जगाली, तेरी आरती उतारूँ, भोली माँ । तू जो दे दे सहारा, सुख जीवन का सारा, तेरे चरणों पे वारुण, भोली माँ ॥ धूल तेरे चरणों की ले कर माथे तिलक लगाया । यही कामना लेकर मैया द्वारे तेरे मैं आया । रहूँ मैं तेरा हो के, तेरी सेवा में खो के, सारा जीवन गुजारूं, भोली माँ ॥ सफल हुआ यह जनम के मैं था जन्मो से कंगाल । तुने भक्ति का ...

क्षमा करो अपराध, शरण माँ आया हूँ

क्षमा करो अपराध, शरण माँ आया हूँ माता वैष्णो द्वार मै झुकायाँ हूँ देवों के सब संकट तारे रक्त बीज मधु केट्भ मारे शुम्भ अशुम्भ असुर संघारे किया भगत कल्याण, शरण माँ आया हूँ बालकपन खेलों में गवायाँ योवन विषयों में भरमाया बुढापन कुछ काम न आया जीवन सफल बनाओ, शरण माँ आया हूँ धन योवन का साथ नहीं है विदयाधन कुछ पास नहीं है नाम बड़ा नहीं काम बड़ा नहीं नहीं बड़ा कुल धाम, शरण माँ आया हूँ धर्म मार्ग मुझको न सुहाते सदा कुमार्ग मुझको भाते मन चंचल तेरा ध्यान न करता बड़ा चबल नादान, शरण माँ आया हूँ घर बहार से हूँ ठुकराया विषयों मैं भटका घबराया समय गवां कर मैं पछताया विषय सर्प मन दशा, शरण माँ आया हूँ माँ विपदा ने मुझे हैं घेरा बिन तेरे अब कोई न मेरा दिन बंधू माँ नाम है तेरा करो सफल निज धाम, शरण माँ आया हूँ क्षमा करो अपराध, शरण माँ आया हूँ माता वैष्णो द्वार मै झुकायाँ हूँ

श्री दुर्गा चालीसा

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ॐ सर्वमंगलमांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके । शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते ॥ श्री दुर्गा चालीसा नमो नमो दुर्गे सुख करनी । नमो नमो अम्बे दुःख हरनी ॥ निरंकार है ज्योति तुम्हारी । तिहूँ लोक फैली उजियारी ॥ शशि ललाट मुख महाविशाला । नेत्र लाल भृकुटी बिकराला ॥ रूप मातु को अधिक सुहावे । दरश करत जन अति सुख पावे ॥ तुम संसार शक्ति लय कीना । पालन हेतु अन्न धन दीना ॥ अन्नपूर्णा तुम जग पाला । तुम ही आदि सुन्दरी बाला ॥ प्रलयकाल सब नाशनहारी । तुम गौरी शिवशंकर प्यारी ॥ शिव योगी तुम्हरे गुन गावें । ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें ॥ रूप सरस्वती का तुम धारा । दे सुबुधि ऋषि-मुनिन उबारा ॥ धर्‍यो रूप नरसिंह को अम्बा । परगट भईं फाड़ कर खम्बा ॥ रक्षा करि प्रहलाद बचायो । हिरनाकुश को स्वर्ग पठायो ॥ लक्ष्मी रूप धरो जग जानी । श्री नारायण अंग समानी ॥ क्षीरसिन्धु में करत बिलासा । दयासिन्धु दीजै मन आसा ॥ हिंगलाज में तुम्हीं भवानी । महिमा अमित न जात बखानी ॥ मातंगी धूमावति माता । भुवनेश्वरि बगला सुखदाता ॥ श्री भैरव तारा जग-तारिणि । छिन्न-भाल भव-दुःख निवारिणि ॥ केहरि वाहन ...

शारदीय नवरात्रि : आ रही है मां, मनचाहे वरदानों से भरिए अपनी खाली झोली

मां के स्वागत के दिन आ गए हैं। इस साल नवरात्रि 10 अक्टूबर से शुरू हो रही है। मां की आराधना का यह उत्सव इस साल दिनों का है। सालों बाद नवरात्रि में दस दिन तक मां की भक्ति कर मन चाहे वरदान पाने का मौका हम सभी के पास है। नवरात्रि में हम शक्ति स्वरूपा मां दुर्गा की पूजा करते हैं। चैत्र के साथ अश्विन नवरात्रि का विशेष महत्व है। शारदीय नवरात्रि का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है, क्योंकि यह नवरात्रि पर्व दशहरे से ठीक पहले हैं और पूरा महीना ही त्योहारी सीजन से भरपूर है। महानवरात्रि के नौ दिनों में मां के अलग–अलग रुपों – मां शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री मां की शक्ति पूजा की जाती है। घटस्थापना नवरात्रि के पहले दिन होती है। 9 दिनों तक मां के लिए की जाने वाली पूजा और उपवास 10वें दिन कन्या पूजन के साथ खोला जाता है। नवरात्रि शुरुआत – 10 अक्टूबर (बुधवार) 2018 महाअष्टमी– 17 अक्टूबर महानवमी– 18 अक्टूबर (गुरुवार) 2018 नवरात्रि दौरान घर में घट स्थापना और पूजा विधि– नवरात्रि घट स्थापना समय नवरात्रि घट स्थापना मुहूर्त 2018 – 06:18:40 स...

गायत्री माता आरती

जय गायत्री माता, जयति जय गायत्री माता। सत् मारग पर हमें चलाओ, जो है सुखदाता॥ जयति जय गायत्री माता... आदि शक्ति तुम अलख निरञ्जन जग पालन कर्त्री। दुःख, शोक, भय, क्लेश, कलह दारिद्रय दैन्य हर्त्री॥ जयति जय गायत्री माता... ब्रहृ रुपिणी, प्रणत पालिनी, जगतधातृ अम्बे। भवभयहारी, जनहितकारी, सुखदा जगदम्बे॥ जयति जय गायत्री माता... भयहारिणि भवतारिणि अनघे, अज आनन्द राशी। अविकारी, अघहरी, अविचलित, अमले, अविनाशी॥ जयति जय गायत्री माता... कामधेनु सत् चित् आनन्दा, जय गंगा गीता। सविता की शाश्वती शक्ति, तुम सावित्री सीता॥ जयति जय गायत्री माता... ऋग्, यजु, साम, अथर्व, प्रणयिनी, प्रणव महामहिमे। कुण्डलिनी सहस्त्रार, सुषुम्ना, शोभा गुण गरिमे॥ जयति जय गायत्री माता... स्वाहा, स्वधा, शची, ब्रहाणी, राधा, रुद्राणी। जय सतरुपा, वाणी, विघा, कमला, कल्याणी॥ जयति जय गायत्री माता... जननी हम है, दीन, हीन, दुःख, दरिद्र के घेरे। यदपि कुटिल, कपटी कपूत, तऊ बालक है तेरे॥ जयति जय गायत्री माता... स्नेहसनी करुणामयि माता, चरण शरण दीजै। बिलख रहे हम शिशु सुत तेरे, दया दृष्टि कीजै॥ जयत...

आरती श्री गंगा जी

ॐ जय गंगे माता, मैया जय गंगे माता। जो नर तुमको ध्याता, मनवांछित फल पाता॥ ॐ जय गंगे माता॥ चन्द्र-सी ज्योति तुम्हारी, जल निर्मल आता। शरण पड़े जो तेरी, सो नर तर जाता॥ ॐ जय गंगे माता॥ पुत्र सगर के तारे, सब जग को ज्ञाता। कृपा दृष्टि हो तुम्हारी, त्रिभुवन सुख दाता॥ ॐ जय गंगे माता॥ एक बार जो प्राणी, शरण तेरी आता। यम की त्रास मिटाकर, परमगति पाता॥ ॐ जय गंगे माता॥ आरती मातु तुम्हारी, जो नर नित गाता। सेवक वही सहज में, मुक्ति को पाता॥ ॐ जय गंगे माता॥

आरती श्री वैष्णो देवी

जय वैष्णवी माता, मैया जय वैष्णवी माता। हाथ जोड़ तेरे आगे, आरती मैं गाता॥ शीश पे छत्र विराजे, मूरतिया प्यारी। गंगा बहती चरनन, ज्योति जगे न्यारी॥ ब्रह्मा वेद पढ़े नित द्वारे, शंकर ध्यान धरे। सेवक चंवर डुलावत, नारद नृत्य करे॥ सुन्दर गुफा तुम्हारी, मन को अति भावे। बार-बार देखन को, ऐ माँ मन चावे॥ भवन पे झण्डे झूलें, घंटा ध्वनि बाजे। ऊँचा पर्वत तेरा, माता प्रिय लागे॥ पान सुपारी ध्वजा नारियल, भेंट पुष्प मेवा। दास खड़े चरणों में, दर्शन दो देवा॥ जो जन निश्चय करके, द्वार तेरे आवे। उसकी इच्छा पूरण, माता हो जावे॥ इतनी स्तुति निश-दिन, जो नर भी गावे। कहते सेवक ध्यानू, सुख सम्पत्ति पावे॥

आरती श्री सरस्वती जी

जय सरस्वती माता, मैया जय सरस्वती माता। सदगुण वैभव शालिनी, त्रिभुवन विख्याता॥ जय सरस्वती माता॥ चन्द्रवदनि पद्मासिनि, द्युति मंगलकारी। सोहे शुभ हंस सवारी, अतुल तेजधारी॥ जय सरस्वती माता॥ बाएं कर में वीणा, दाएं कर माला। शीश मुकुट मणि सोहे, गल मोतियन माला॥ जय सरस्वती माता॥ देवी शरण जो आए, उनका उद्धार किया। पैठी मंथरा दासी, रावण संहार किया॥ जय सरस्वती माता॥ विद्या ज्ञान प्रदायिनि, ज्ञान प्रकाश भरो। मोह अज्ञान और तिमिर का, जग से नाश करो॥ जय सरस्वती माता॥ धूप दीप फल मेवा, माँ स्वीकार करो। ज्ञानचक्षु दे माता, जग निस्तार करो॥ जय सरस्वती माता॥ माँ सरस्वती की आरती, जो कोई जन गावे। हितकारी सुखकारी ज्ञान भक्ति पावे॥ जय सरस्वती माता॥ जय सरस्वती माता, जय जय सरस्वती माता। सदगुण वैभव शालिनी, त्रिभुवन विख्याता॥ जय सरस्वती माता॥

शनिदेव की आरती

जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी। सूरज के पुत्र प्रभु छाया महतारी॥ जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी॥ श्याम अंग वक्र-दृ‍ष्टि चतुर्भुजा धारी। निलाम्बर धार नाथ गज की असवारी॥ जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी॥ क्रीट मुकुट शीश सहज दिपत है लिलारी। मुक्तन की माल गले शोभित बलिहारी॥ जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी॥ मोदक और मिष्ठान चढ़े, चढ़ती पान सुपारी। लोहा, तिल, तेल, उड़द महिषी है अति प्यारी॥ जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी॥ देव दनुज ऋषि मुनि सुमिरत नर नारी। विश्वनाथ धरत ध्यान हम हैं शरण तुम्हारी॥ जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी॥

आरती श्री सूर्य जी

जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन। त्रिभुवन - तिमिर - निकन्दन, भक्त-हृदय-चन्दन॥ जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन। सप्त-अश्वरथ राजित, एक चक्रधारी। दु:खहारी, सुखकारी, मानस-मल-हारी॥ जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन। सुर - मुनि - भूसुर - वन्दित, विमल विभवशाली। अघ-दल-दलन दिवाकर, दिव्य किरण माली॥ जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन। सकल - सुकर्म - प्रसविता, सविता शुभकारी। विश्व-विलोचन मोचन, भव-बन्धन भारी॥ जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन। कमल-समूह विकासक, नाशक त्रय तापा। सेवत साहज हरत अति मनसिज-संतापा॥ जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन। नेत्र-व्याधि हर सुरवर, भू-पीड़ा-हारी। वृष्टि विमोचन संतत, परहित व्रतधारी॥ जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन। सूर्यदेव करुणाकर, अब करुणा कीजै। हर अज्ञान-मोह सब, तत्त्वज्ञान दीजै॥ जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन।

आरती श्री सत्यनारायणजी

जय लक्ष्मीरमणा श्री जय लक्ष्मीरमणा। सत्यनारायण स्वामी जनपातक हरणा॥ जय लक्ष्मीरमणा। रत्नजड़ित सिंहासन अद्भुत छवि राजे। नारद करत निराजन घंटा ध्वनि बाजे॥ जय लक्ष्मीरमणा। प्रगट भये कलि कारण द्विज को दर्श दियो। बूढ़ो ब्राह्मण बनकर कंचन महल कियो॥ जय लक्ष्मीरमणा। दुर्बल भील कठारो इन पर कृपा करी। चन्द्रचूड़ एक राजा जिनकी विपति हरी॥ जय लक्ष्मीरमणा। वैश्य मनोरथ पायो श्रद्धा तज दीनी। सो फल भोग्यो प्रभुजी फिर स्तुति कीनी॥ जय लक्ष्मीरमणा। भाव भक्ति के कारण छिन-छिन रूप धर्यो। श्रद्धा धारण कीनी तिनको काज सर्यो॥ जय लक्ष्मीरमणा। ग्वाल बाल संग राजा वन में भक्ति करी। मनवांछित फल दीनो दीनदयाल हरी॥ जय लक्ष्मीरमणा। चढ़त प्रसाद सवाया कदली फल मेवा। धूप दीप तुलसी से राजी सत्यदेवा॥ जय लक्ष्मीरमणा। श्री सत्यनारायणजी की आरती जो कोई नर गावे। कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे॥ जय लक्ष्मीरमणा।

श्री रामायणजी की आरती

आरती श्री रामायण जी की। कीरति कलित ललित सिया-पी की॥ गावत ब्राह्मादिक मुनि नारद। बालमीक विज्ञान विशारद। शुक सनकादि शेष अरु शारद। बरनि पवनसुत कीरति नीकी॥ आरती श्री रामायण जी की। कीरति कलित ललित सिया-पी की॥ गावत वेद पुरान अष्टदस। छओं शास्त्र सब ग्रन्थन को रस। मुनि-मन धन सन्तन को सरबस। सार अंश सम्मत सबही की॥ आरती श्री रामायण जी की। कीरति कलित ललित सिया-पी की॥ गावत सन्तत शम्भू भवानी। अरु घट सम्भव मुनि विज्ञानी। व्यास आदि कविबर्ज बखानी। कागभुषुण्डि गरुड़ के ही की॥ आरती श्री रामायण जी की। कीरति कलित ललित सिया-पी की॥ कलिमल हरनि विषय रस फीकी। सुभग सिंगार मुक्ति जुबती की। दलन रोग भव मूरि अमी की। तात मात सब विधि तुलसी की॥ आरती श्री रामायण जी की। कीरति कलित ललित सिया-पी की॥

श्री बाँकेबिहारी की आरती

Menu menu Skip Navigation Links श्री बाँकेबिहारी की आरती श्री बाँकेबिहारी तेरी आरती गाऊँ। कुन्जबिहारी तेरी आरती गाऊँ। श्री श्यामसुन्दर तेरी आरती गाऊँ। श्री बाँकेबिहारी तेरी आरती गाऊँ॥ मोर मुकुट प्रभु शीश पे सोहे। प्यारी बंशी मेरो मन मोहे। देखि छवि बलिहारी जाऊँ। श्री बाँकेबिहारी तेरी आरती गाऊँ॥ चरणों से निकली गंगा प्यारी। जिसने सारी दुनिया तारी। मैं उन चरणों के दर्शन पाऊँ। श्री बाँकेबिहारी तेरी आरती गाऊँ॥ दास अनाथ के नाथ आप हो। दुःख सुख जीवन प्यारे साथ हो। हरि चरणों में शीश नवाऊँ। श्री बाँकेबिहारी तेरी आरती गाऊँ॥ श्री हरि दास के प्यारे तुम हो। मेरे मोहन जीवन धन हो। देखि युगल छवि बलि-बलि जाऊँ। श्री बाँकेबिहारी तेरी आरती गाऊँ॥ आरती गाऊँ प्यारे तुमको रिझाऊँ। हे गिरिधर तेरी आरती गाऊँ। श्री श्यामसुन्दर तेरी आरती गाऊँ। श्री बाँकेबिहारी तेरी आरती गाऊँ॥

आरती कुंजबिहारी की

आरती कुंजबिहारी की, श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की गले में बैजंती माला, बजावै मुरली मधुर बाला। श्रवण में कुण्डल झलकाला, नंद के आनंद नंदलाला। गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली। लतन में ठाढ़े बनमाली; भ्रमर सी अलक, कस्तूरी तिलक, चंद्र सी झलक; ललित छवि श्यामा प्यारी की॥ श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥ आरती कुंजबिहारी की श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥ कनकमय मोर मुकुट बिलसै, देवता दरसन को तरसैं। गगन सों सुमन रासि बरसै; बजे मुरचंग, मधुर मिरदंग, ग्वालिन संग; अतुल रति गोप कुमारी की॥ श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥ आरती कुंजबिहारी की श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥ जहां ते प्रकट भई गंगा, कलुष कलि हारिणि श्रीगंगा। स्मरन ते होत मोह भंगा; बसी सिव सीस, जटा के बीच, हरै अघ कीच; चरन छवि श्रीबनवारी की॥ श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥ आरती कुंजबिहारी की श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥ चमकती उज्ज्वल तट रेनू, बज रही वृंदावन बेनू। चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू; हंसत मृदु मंद,चांदनी चंद, कटत भव फंद; टेर सुन दीन भिखारी की॥ श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की॥ आरती कुंजबिहारी की श्री गिरिधर ...

मन मेरा मंदिर आँखे दिया बाती

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मन मेरा मंदिर आँखे दिया बाती, होंठो की हैं थालिया, बोल फूल पाती। रोम रोम जीभा तेरा नाम पुकारती, आरती ओ मैया तेरी आरती, ज्योतां वालिये माँ तेरी आरती॥ हे महालक्ष्मी हे गौरी, तू अपने आप है चोहरी, तेरी कीमत तू ही जाने, तू बुरा भला पहचाने। यह कहते दिन और राती, तेरी लिखीं ना जाए बातें, कोई माने जा ना माने हम भक्त तेरे दीवाने, तेरे पाँव सारी दुनिया पखारती॥ हे गुणवंती सतवंती, हे पत्त्वंती रसवंती, मेरी सुनना यह विनंती, मेरी चोला रंग बसंती। हे दुःख भंजन सुख दाती, हमें सुख देना दिन राती, जो तेरी महिमा गाये, मुहं मांगी मुरादे पाए, हर आँख तेरी और निहारती॥ हे महाकाल महाशक्ति, हमें देदे ऐसी भक्ति, हे जगजननी महामाया, है तू ही धुप और छाया। तू अमर अजर अविनाशी, तू अनमिट पूरनमाशी, सब करके दूर अँधेरे हमें बक्शो नए सवेरे। तू तो भक्तो की बिगड़ी संवारती॥

भोर भईल दिन चढ़ गया मेरी मैया

भोर भई दिन चढ़ गया मेरी अम्बे………….2 हो रही जय जय कार मंदिर विच आरती जय माँ । हे दरबारा वाली आरती जय माँ, ओ पहाड़ा वाली आरती जय माँ काहे दी मैया तेरी आरती बनावा………………2 काहे दी पावां विच बाती मंदिर विच आरती जय माँ । सुहे चोले वाली आरती जय माँ, हे माँ पहाड़ा वाली आरती जय माँ ॥ सर्व सोने दी आरती बनावा…………2, अगर कपूर पावां बाती मंदिर विच आरती जय माँ हे माँ पिंडी रानी आरती जय माँ, हे पहाड़ा वाली आरती जय माँ कौन सुहागन दिवा बालेया मेरी मैया……….2, कौन जागेगा सारी रात मंदिर विच आरती जय माँ सच्चिया ज्योतां वाली आरती जय माँ, हे पहाड़ा वाली आरती जय माँ सर्व सुहागिन दिवा बलिया मेरी अम्बे……….2, ज्योत जागेगी सारी रात मंदिर विच आरती जय माँ हे माँ त्रिकुटा रानी आरती जय माँ, हे पहाड़ा वाली आरती जय माँ जुग जुग जीवे तेरा जम्मुए दा राजा…….2, जिस तेरा भवन बनाया मंदिर विच आरती जय माँ हे मेरी अम्बे रानी आरती जय माँ, हे पहाड़ा वाली आरती जय माँ सिमर चरण तेरा ध्यानु यश गावे………….2, जो ध्यावे सो, यो फल पावे, रख बाणे दी लाज, मंदिर विच आरती जय माँ, सोहने मंदिरां वाली आरती जय माँ ॥ भोर भई दिन चढ़ गया मेरी अम्ब...

कैसी यह देर लगाई दुर्गे हे मात मेरी हे मात मेरी

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विष्णु भगवान की आरती - ॐ जय जगदीश हरे...

ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे। भक्तजनों के संकट क्षण में दूर करे॥ जो ध्यावै फल पावै, दुख बिनसे मन का। सुख-संपत्ति घर आवै, कष्ट मिटे तन का॥ ॐ जय...॥ मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूं किसकी। तुम बिनु और न दूजा, आस करूं जिसकी॥ ॐ जय...॥ तुम पूरन परमात्मा, तुम अंतरयामी॥ पारब्रह्म परेमश्वर, तुम सबके स्वामी॥ ॐ जय...॥ तुम करुणा के सागर तुम पालनकर्ता। मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥ ॐ जय...॥ तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति। किस विधि मिलूं दयामय! तुमको मैं कुमति॥ ॐ जय...॥ दीनबंधु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे। अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे॥ ॐ जय...॥ विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा। श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा॥ ॐ जय...॥ तन-मन-धन और संपत्ति, सब कुछ है तेरा। तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा॥ ॐ जय...॥ जगदीश्वरजी की आरती जो कोई नर गावे। कहत शिवानंद स्वामी, मनवांछित फल पावे॥ ॐ जय...॥

आरती श्री रामचन्द्रजी

श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन, हरण भवभय दारुणम्। नव कंज लोचन, कंज मुख कर कंज पद कंजारुणम्॥ श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन कन्दर्प अगणित अमित छवि, नव नील नीरद सुन्दरम्। पट पीत मानहुं तड़ित रूचि-शुचि नौमि जनक सुतावरम्॥ श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन भजु दीनबंधु दिनेश दानव दैत्य वंश निकन्दनम्। रघुनन्द आनन्द कन्द कौशल चन्द्र दशरथ नन्द्नम्॥ श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन सिर मुकुट कुंडल तिलक चारू उदारु अंग विभूषणम्। आजानुभुज शर चाप-धर, संग्राम जित खरदूषणम्॥ श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन इति वदति तुलसीदास, शंकर शेष मुनि मन रंजनम्। मम ह्रदय कंज निवास कुरु, कामादि खल दल गंजनम्॥ श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन मन जाहि राचेऊ मिलहि सो वर सहज सुन्दर सांवरो। करुणा निधान सुजान शील सनेह जानत रावरो॥ श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन एहि भांति गौरी असीस सुन सिय हित हिय हरषित अली। तुलसी भवानिहि पूजी पुनि-पुनि मुदित मन मन्दिर चली॥ श्री रामचन्द्र कृपालु भजु मन

आरती: जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी

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जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी, मैया जय मंगल करनी,मैया जय आनंद करनी,मैया जय संकट हरनी तुमको निशदिन ध्यावत,मैया जी को निशदिन ध्यावत हरि ब्रह्मा शिवरी।,॥ॐ जय अम्बे गौरी...॥ मांग सिंदूर विराजत, टीको मृगमद को, उज्ज्वल से दोउ नैना, चंद्रवदन नीको॥ ॥ॐ जय अम्बे गौरी...॥ कनक समान कलेवर, रक्ताम्बर राजै, रक्तपुष्प गल माला, कंठन पर साजै॥ ॥ॐ जय अम्बे गौरी...॥ केहरि वाहन राजत, खड्ग खप्पर धारी, सुर-नर-मुनिजन सेवत, तिनके दुखहारी॥ ॥ॐ जय अम्बे गौरी...॥ कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती, कोटिक चंद्र दिवाकर, सम राजत ज्योती॥ ॥ॐ जय अम्बे गौरी...॥ शुंभ-निशुंभ बिदारे, महिषासुर घाती, धूम्र विलोचन नैना, निशदिन मदमाती॥ ॥ॐ जय अम्बे गौरी...॥ चण्ड-मुण्ड संहारे, शोणित बीज हरे, मधु-कैटभ दोउ मारे, सुर भयहीन करे॥ ॥ॐ जय अम्बे गौरी...॥ ब्रह्माणी, रूद्राणी, तुम कमला रानी, आगम निगम बखानी, तुम शिव पटरानी॥ ॥ॐ जय अम्बे गौरी...॥ चौंसठ योगिनी मंगल गावत, नृत्य करत भैरों, बाजत ताल मृदंगा, अरू बाजत डमरू॥ ॥ॐ जय अम्बे गौरी...॥ तुम ही जग की माता, तुम ही हो भरता, भक्तन की दुख हरता, सुख संपति करता॥ ॥ॐ जय अम्बे गौरी...॥ भु...

आरती: माँ दुर्गा, माँ काली

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अम्बे तू है जगदम्बे काली जय दुर्गे खप्पर वाली। तेरे ही गुण गाये भारती, ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती॥ तेरे भक्त जनो पर, भीर पडी है भारी माँ। दानव दल पर टूट पडो माँ करके सिंह सवारी। सौ-सौ सिंहो से तू बलशाली, अष्ट भुजाओ वाली, दुष्टो को तू ही ललकारती। ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती माँ बेटे का है इस जग मे बडा ही निर्मल नाता। पूत - कपूत सुने है पर न, माता सुनी कुमाता॥ सब पे करूणा दरसाने वाली, अमृत बरसाने वाली, नैया भवँर से उबारती। ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती॥ नही मांगते धन और दौलत, न चांदी न सोना माँ। हम तो मांगे माँ तेरे मन मे, इक छोटा सा कोना॥ सबकी बिगडी बनाने वाली, लाज बचाने वाली, सतियो के सत को सवांरती। ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती॥ भक्त तुम्हारे निशदिन मैया, तेरे ही गुन गावे। मनवांछित वर देदे मैया तुझसे ध्यान लगावे। मैया तेरा ध्यान लगावे। मैया तू ही वर देने वाली जाए न कोई खाली। दर पे तुम्हारे माता मांगते ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती।। चरण शरण मे खडे तुम्हारी, ले पूजा की थाली। वरद हस्त सर पर रख दो,मॉ सकंट हरने वाली। मॉ भर दो भक्ति रस प्याली, अष्ट भुजाओ वाली, काशी के कारज तू ही सारत...

आरती: जय सन्तोषी माता!

जय सन्तोषी माता, मैया जय सन्तोषी माता। अपने सेवक जन की सुख सम्पति दाता॥ जय सन्तोषी माता...॥ सुन्दर चीर सुनहरी मां धारण कीन्हो। हीरा पन्ना दमके, तन श्रृंगार लीन्हो॥ जय सन्तोषी माता...॥ गेरू लाल छटा छबि बदन कमल सोहे। मंद हंसत करुणामयी, त्रिभुवन जन मोहे॥ जय सन्तोषी माता...॥ स्वर्ण सिंहासन बैठी चंवर दुरे प्यारे। धूप, दीप, मधु, मेवा, भोज धरे न्यारे॥ जय सन्तोषी माता...॥ गुड़ अरु चना परम प्रिय तामें संतोष कियो। संतोषी कहलाई, भक्तन वैभव दियो॥ जय सन्तोषी माता...॥ शुक्रवार प्रिय मानत आज दिवस सोही। भक्त मंडली छाई, कथा सुनत मोही॥ जय सन्तोषी माता...॥ मंदिर जग मग ज्योति मंगल ध्वनि छाई। विनय करें हम सेवक, चरनन सिर नाई॥ जय सन्तोषी माता...॥ भक्ति भावमय पूजा अंगीकृत कीजै। जो मन बसे हमारे, इच्छित फल दीजै॥ जय सन्तोषी माता...॥ दुखी दारिद्री रोगी संकट मुक्त किए। बहु धन धान्य भरे घर, सुख सौभाग्य दिए॥ जय सन्तोषी माता...॥ ध्यान धरे जो तेरा वांछित फल पायो। पूजा कथा श्रवण कर, घर आनन्द आयो॥ जय सन्तोषी माता...॥ चरण गहे की लज्जा रखियो जगदम्बे। संकट तू ही निवारे, दयामयी अम्बे॥ जय सन्तोषी माता...॥ सन्तोषी ...

भजन: मैं तो आरती उतारूँ रे संतोषी माता की।

BhaktiBharat.com Mandir Festival Aarti HomeBhajanभजन: मैं तो आरती उतारूँ रे संतोषी माता की। दशलक्षण पर्व | अनंत चतुर्दशी | आज की तिथि | Bhajan of The Day! भजन: मैं तो आरती उतारूँ रे संतोषी माता की। नवदुर्गा, दुर्गा पूजा, नवरात्रि, नवरात्रे, नवरात्रि, माता की चौकी, देवी जागरण, जगराता, शुक्रवार दुर्गा तथा अष्टमी के शुभ अवसर पर गाये जाने वाला प्रसिद्ध व लोकप्रिय भजन। मैं तो आरती उतारूँ रे संतोषी माता की। मैं तो आरती उतारूँ रे संतोषी माता की। जय जय संतोषी माता जय जय माँ॥ जय जय संतोषी माता जय जय माँ जय जय संतोषी माता जय जय माँ बड़ी ममता है बड़ा प्यार माँ की आँखों मे। माँ की आँखों मे। बड़ी करुणा माया दुलार माँ की आँखों मे। माँ की आँखों मे। क्यूँ ना देखूँ मैं बारम्बार माँ की आँखों मे। माँ की आँखों मे। दिखे हर घड़ी नया चमत्कार आँखों मे। माँ की आँखों मे। नृत्य करो झूम झूम, छम छमा छम झूम झूम, झांकी निहारो रे॥ मैं तो आरती उतारूँ रे संतोषी माता की। मैं तो आरती उतारूँ रे संतोषी माता की। जय जय संतोषी माता जय जय माँ॥ जय जय संतोषी माता जय जय माँ जय जय संतोषी माता जय जय माँ सदा होती है जय जय कार...

शिवजी की आरती: ओम जय शिव ओंकारा

ओम जय शिव ओंकारा, स्वामी जय शिव ओंकारा। ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा॥ ओम जय शिव ओंकारा॥ एकानन चतुरानन पञ्चानन राजे। हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजे॥ ओम जय शिव ओंकारा॥ दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे। त्रिगुण रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे॥ ओम जय शिव ओंकारा॥ अक्षमाला वनमाला मुण्डमाला धारी। त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी॥ ओम जय शिव ओंकारा॥ श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे। सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे॥ ओम जय शिव ओंकारा॥ कर के मध्य कमण्डलु चक्र त्रिशूलधारी। सुखकारी दुखहारी जगपालन कारी॥ ओम जय शिव ओंकारा॥ ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका। मधु-कैटभ दो‌उ मारे, सुर भयहीन करे॥ ओम जय शिव ओंकारा॥ लक्ष्मी व सावित्री पार्वती संगा। पार्वती अर्द्धांगी, शिवलहरी गंगा॥ ओम जय शिव ओंकारा॥ पर्वत सोहैं पार्वती, शंकर कैलासा। भांग धतूर का भोजन, भस्मी में वासा॥ ओम जय शिव ओंकारा॥ जटा में गंग बहत है, गल मुण्डन माला। शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला॥ ओम जय शिव ओंकारा॥ काशी में विराजे विश्वनाथ, नन्दी ब्रह्मचारी। नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी॥ ओम जय शिव ओंकारा॥ त्रिगुणस्वामी जी की आरति जो कोइ ...

हनुमानजी की आरती: आरती कीजै हनुमान लला की

आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्ट दलन रघुनाथ कला की॥ जाके बल से गिरिवर कांपे। रोग दोष जाके निकट न झांके॥ अंजनि पुत्र महा बलदाई। सन्तन के प्रभु सदा सहाई॥ दे बीरा रघुनाथ पठाए। लंका जारि सिया सुधि लाए॥ लंका सो कोट समुद्र-सी खाई। जात पवनसुत बार न लाई॥ लंका जारि असुर संहारे। सियारामजी के काज सवारे॥ लक्ष्मण मूर्छित पड़े सकारे। आनि संजीवन प्राण उबारे॥ पैठि पाताल तोरि जम-कारे। अहिरावण की भुजा उखारे॥ बाएं भुजा असुरदल मारे। दाहिने भुजा संतजन तारे॥ सुर नर मुनि आरती उतारें। जय जय जय हनुमान उचारें॥ कंचन थार कपूर लौ छाई। आरती करत अंजना माई॥ जो हनुमानजी की आरती गावे। बसि बैकुण्ठ परम पद पावे॥ लंका विध्वंस कर्यो रघुराई। तुलसीदास हरि कीरति गाई।। आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्ट दलन रघुनाथ कला की॥

मां लक्ष्मीजी की आरती

ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता तुम को निश दिन सेवत, हर विष्णु विधाता.... ॐ जय लक्ष्मी माता...।। उमा रमा ब्रह्माणी, तुम ही जग माता सूर्य चंद्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता ॐ जय लक्ष्मी माता...।। दुर्गा रूप निरंजनि, सुख सम्पति दाता जो कोई तुमको ध्याता, ऋद्धि सिद्धि धन पाता ॐ जय लक्ष्मी माता...।। तुम पाताल निवासिनी, तुम ही शुभ दाता कर्म प्रभाव प्रकाशिनी, भव निधि की त्राता ॐ जय लक्ष्मी माता...।। जिस घर तुम रहती सब सद्‍गुण आता सब संभव हो जाता, मन नहीं घबराता ॐ जय लक्ष्मी माता...।। तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न कोई पाता खान पान का वैभव, सब तुमसे आता ॐ जय लक्ष्मी माता...।। शुभ गुण मंदिर सुंदर, क्षीरोदधि जाता रत्न चतुर्दश तुम बिन, कोई नहीं पाता ॐ जय लक्ष्मी माता...।। महालक्ष्मीजी की आरती, जो कोई नर गाता उर आनंद समाता, पाप उतर जाता ॐ जय लक्ष्मी माता...।।

जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा, यहां पढ़ें गणेश जी की आरती

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जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा। माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।। एकदंत, दयावन्त, चार भुजाधारी, मस्तक सिन्दूर सोहे, मूस की सवारी। पान चढ़े, फूल चढ़े और चढ़े मेवा, लड्डुअन का भोग लगे, सन्त करें सेवा।। .. जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश, देवा। माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।। अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया, बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया। जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा .. माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा। दीनन की लाज रखो, शंभु सुतकारी। कामना को पूर्ण करो जय बलिहारी। 'सूर' श्याम शरण आए, सफल कीजे सेवा।। लड्डुअन का भोग लगे, सन्त करें सेवा।। .. जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा .. माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।

जय देव, जय देव, जय मंगल मूर्ति, यहां पढ़ें गणेश जी की आरती

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सुखकर्ता दुःखहर्ता वार्ता विघ्नाची नुरवी पुरवी प्रेम कृपा जयाची सर्वांगी सुंदर उटी शेंदुराची कंठी झलके माल मुक्ता फलांची | जयदेव जयदेव जयदेव जयदेव जयदेव जयदेव जय मंगलमूर्ति दर्शन मात्रे मन कामना पूर्ती | जयदेव जयदेव जयदेव जयदेव रत्नखचित फरा तुज गौरीकुमरा चंदनाची उटी कुमकुम केशरा हीरे जड़ित मुकुट शोभतो बरा रुणझुणती नूपुरे चरणी घागरिया | जयदेव जयदेव जयदेव जयदेव जयदेव जयदेव जय मंगलमूर्ति दर्शन मात्रे मन कामना पूर्ती | जयदेव जयदेव जयदेव जयदेव लम्बोदर पीताम्बर फणिवर बंधना सरल सोंड वक्र तुंड त्रिनयना दास रामाचा वाट पाहे सदना संकटी पावावे निर्वाणी रक्षावे सुर वर वंदना | जयदेव जयदेव जयदेव जयदेव जयदेव जयदेव जय मंगलमूर्ति दर्शन मात्रे मन कामना पूर्ती | जयदेव जयदेव जयदेव जयदेव

नवरात्रि नवमी- माँ सिद्धिधात्री की उपासना का दिन

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देवी के 9वें स्वरुप में मां सिद्धिदात्री की उपासना की जाती है, जो दरसल देवी का पूर्ण स्वरुप है. केवल इस दिन मां की उपासना करने से, सम्पूर्ण नवरात्रि की उपासना का फल मिलता है. यह पूजा नवमी तिथि पर की जाती है. महानवमी पर शक्ति पूजा भी की जाती है, जिसको करने से निश्चित रूप से विजय की प्राप्ति होती है. आज के दिन महासरस्वती की उपासना भी होती है, जिससे अद्भुत विद्या और बुद्धि की प्राप्ति हो सकती है. इस बार देवी के 9वें स्वरुप की पूजा 29 सितम्बर को की जाएगी. मां सिद्धिदात्री का स्वरुप नवदुर्गा में मां सिद्धिदात्री का स्वरुप अंतिम और 9वां स्वरुप है. यह समस्त वरदानों और सिद्धियों को देने वाली हैं. यह कमल के पुष्प पर विराजमान हैं और इनके हाथों में शंख, चक्र, गदा और पद्म है. यक्ष, गंधर्व, किन्नर, नाग, देवी-देवता और मनुष्य सभी इनकी कृपा से सिद्धियों को प्राप्त करते हैं. इस दिन मां सिद्धिदात्री की उपासना करने से नवरात्रि के 9 दिनों का फल प्राप्त हो जाता है. महत्व मां सिद्धिदात्री अपने भक्तों को सभी सिद्धियां प्रदान करने वाली हैं. देवीपुराण में भी लिखा है की भगवान शिव को इनकी कृपा से ही सभी ...

नवरात्रि अष्ठमी- माँ महागौरी माता का दिन

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नवरात्रि अष्टमी-माँ महागौरी नवरात्रि में दुर्गा पूजा के दौरान अष्टमी पूजन का विशेष महत्व माना जाता है। इस दिन मां दुर्गा के महागौरी रूप का पूजन किया जाता है। सुंदर, अति गौर वर्ण होने के कारण इन्हें महागौरी कहा जाता है। महागौरी की आराधना से असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं, समस्त पापों का नाश होता है, सुख-सौभाग्य की प्राप्‍ति होती है और हर मनोकामना पूर्ण होती है। जय माता दी

नवरात्रि सप्तमी- माँ कालरात्रि माता का दिन

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नवरात्रि सप्तम दिन-माता कालरात्रि श्री दुर्गा का सप्तम रूप श्री कालरात्रि हैं। ये काल का नाश करने वाली हैं, इसलिए कालरात्रि कहलाती हैं। नवरात्रि के सप्तम दिन इनकी पूजा और अर्चना की जाती है। इस दिन साधक को अपना चित्त भानु चक्र (मध्य ललाट) में स्थिर कर साधना करनी चाहिए। संसार में कालो का नाश करने वाली देवी ‘कालरात्री’ ही है। भक्तों द्वारा इनकी पूजा के उपरांत उसके सभी दु:ख, संताप भगवती हर लेती है। दुश्मनों का नाश करती है तथा मनोवांछित फल प्रदान कर उपासक को संतुष्ट करती हैं।

नवरात्रि छठा दिन- माँ कात्यायनी का दिन

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नवरात्रि छठा दिन- नवरात्रि में छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा की जाती है। कात्य गोत्र में विश्व प्रसिद्ध महर्षि कात्यायन ने भगवती पराम्बा की उपासना की। कठिन तपस्या की। उनकी इच्छा थी कि उन्हें पुत्री प्राप्त हो। तब मां भगवती ने उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लिया। इसलिए यह देवी कात्यायनी कहलाईं। मन्त्र- चंद्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना। कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी॥ फल- इस देवी को नवरात्रि में छठे दिन पूजा जाता है। इनकी उपासना और आराधना से भक्तों को बड़ी आसानी से अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति होती है। उसके रोग, शोक, संताप और भय नष्ट हो जाते हैं। जन्मों के समस्त पाप भी नष्ट हो जाते हैं।

नवरात्रि पंचम दिन- स्कन्द माता का दिन

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नवरात्र पांचवां दिनः स्कंदमाता भगवान कार्तिकेय यानी स्‍कन्‍द कुमार की माता होने के कारण दुर्गाजी के इस पांचवें स्‍वरूप को स्‍कंदमाता कहा जाता है। देवी के इस स्वरूप मेंभगवान स्‍कंद बालरूप में माता की गोद में विराजमान हैं। माता के इस स्‍वरूप की 4 भुजाएं हैं। शुभ्र वर्ण वाली मां कमल के पुष्‍प पर विराजित हैं। इसी कारण इन्‍हें पद्मासना और विद्यावाहिनी दुर्गा देवी भी कहा जाता है। इनका वाहन सिंह है। स्‍कंदमाता को सौरमंडल की अधिष्‍ठात्री देवी माना जाता है। एकाग्रता से मन को पवित्र करके मां की आराधना करने से व्‍यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। स्‍कंदमाता का मंत्र सिंहासना गता नित्यं पद्माश्रि तकरद्वया | शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी || या देवी सर्वभू‍तेषु मां स्कंदमाता रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

नवरात्रि चौथा दिन-माँ कूष्माण्डा माता

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नवरात्रि चौथा दिन- कूष्मांडा माता देवी पुराण में बताया गया है कि सृष्टि के आरंभ से पहले अंधकार का साम्राज्य था। उस समय आदि शक्ति जगदम्बा देवी कूष्मांडा के रुप में वनस्पतियों एवं सृष्टि की रचना के लिए जरूरी चीजों को संभालकर सूर्य मण्डल के बीच में विराजमान हो गई थी। जै माता दी

नवरात्रि तीसरा दिन- माँ चंद्रघंटा

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नवरात्रि तीसरा दिन-माँ चन्द्रघंटा नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा की जाती है और व्रत रखा जाता है। मां के इस रूप की सच्चे मन से पूजा करने से रोग दूर होते हैं, शत्रुओं से भय नहीं होता और लंबी आयु का वरदान मिलता है। इसके साथ ही मां आध्यात्मिक शक्ति, आत्मविश्वास और मन पर नियंत्रण भी बढ़ाती हैं। मन, कर्म, वचन शुद्ध करके पूजा करने वालों के सब पाप खत्म हो जाते हैं। मंत्र- या देवी सर्वभू‍तेषु माँ चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।। पिण्डज प्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकैर्युता। प्रसादं तनुते महयं चन्द्रघण्टेति विश्रुता।। जै माता दी

नवरात्रि दूसरा दिन- माँ ब्रम्हचारिणी नवरात्र के दूसरे दिन मां दुर्गा के ब्रह्मचारिणी स्वरूप की पूजा की जाती है। मां पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए कई हजार वर्षों तक ब्रह्मचारी रहकर घोर तपस्या की थी। उनकी इस कठिन तपस्या के कारण उनका नाम तपश्चारिणी अर्थात्‌ ब्रह्मचारिणी पड़ गया। वे श्वेत वस्त्र पहनती है, उनके दाएं हाथ में जपमाला तथा बाएं हाथ में कमंडल विराजमान है। मंत्र- दधानां करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डल। देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।। पूजा फल- देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से कुंडली में विराजमान बुरे ग्रहों की दशा सुधरती है और व्यक्ति के अच्छे दिन आते हैं। यही नहीं इनकी पूजा से भगवान महादेव भी प्रसन्न होकर भक्त को मनचाहा वरदान देते हैं। जै माता दी

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नवरात्रि दूसरा दिन- माँ ब्रम्हचारिणी नवरात्र के दूसरे दिन मां दुर्गा के ब्रह्मचारिणी स्वरूप की पूजा की जाती है। मां पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए कई हजार वर्षों तक ब्रह्मचारी रहकर घोर तपस्या की थी। उनकी इस कठिन तपस्या के कारण उनका नाम तपश्चारिणी अर्थात्‌ ब्रह्मचारिणी पड़ गया। वे श्वेत वस्त्र पहनती है, उनके दाएं हाथ में जपमाला तथा बाएं हाथ में कमंडल विराजमान है। मंत्र- दधानां करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डल। देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।। पूजा फल- देवी ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से कुंडली में विराजमान बुरे ग्रहों की दशा सुधरती है और व्यक्ति के अच्छे दिन आते हैं। यही नहीं इनकी पूजा से भगवान महादेव भी प्रसन्न होकर भक्त को मनचाहा वरदान देते हैं। जै माता दी

नवरात्रि विशेष -प्रथम नवदुर्गा: माता शैलपुत्री देवी दुर्गा के नौ रूप होते है | देवी दुर्गा ज़ी के पहले स्वरूप को "माता शैलपुत्री" के नाम से जाना जाता है | ये ही नवदुर्गाओ मे प्रथम दुर्गा है | शैलराज हिमालय के घर पुत्री रूप मे उत्पन्न होने के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा | नवरात्र पूजन मे प्रथम दिवस इन्हीं की पूजा ओर उपासना की जाती है | माता शैलपुत्री का उपासना मंत्र वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्। वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥ पूजा फल: मान्यता है कि माता शैलपुत्री की भक्तिपूर्वक पूजा करने से मनुष्य कभी रोगी नहीं होता। जै माता दी

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प्रथम नवदुर्गा: माता शैलपुत्री देवी दुर्गा के नौ रूप होते है | देवी दुर्गा ज़ी के पहले स्वरूप को "माता शैलपुत्री" के नाम से जाना जाता है | ये ही नवदुर्गाओ मे प्रथम दुर्गा है | शैलराज हिमालय के घर पुत्री रूप मे उत्पन्न होने के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा | नवरात्र पूजन मे प्रथम दिवस इन्हीं की पूजा ओर उपासना की जाती है | माता शैलपुत्री का उपासना मंत्र वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्। वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥ पूजा फल: मान्यता है कि माता शैलपुत्री की भक्तिपूर्वक पूजा करने से मनुष्य कभी रोगी नहीं होता। जै माता दी